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करोड़ों में भी बिक गए, तो कौड़ी के नहीं रहोगे || आचार्य प्रशांत, कबीर साहब पर (2024)

2024-09-06 0 Dailymotion

‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />वीडियो जानकारी: 23.06.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />~ खरा जीवन जीने की पूरी प्रक्रिया नकार की है क्योंकि हम वृत्तियां विकार लेकर ही पैदा होते हैं, अब चूंकि वृत्तियां पहले ही है इसलिए रास्ते में धूल हम और सोखते जाते हैं।<br />~ हम भ्रम और दोष को लेकर न सिर्फ जन्मे हैं बल्कि हमारा एक-एक अनुभव अपना दोष और कुप्रभाव भी छोड़ता चलता है।<br />~ जैसे हमें जन्मगत दोष मिले हैं वैसे ही हमें जन्मगत बल भी मिला है “चुनाव करने का अधिकार”। और इसी चेतना का चुनाव करके : नेति-नेति करके हम सही दिशा की ओर जा सकते हैं।<br />~ हंसा पाये मान सरोवर, ताल तलैया क्यों डोले ⇒ माने गंदगी अब धीरे धीरे छूटने लगी है, जैसे जैसे अध्यात्म जीवन में आ रहा है।<br />~ बैलगाड़ी पर बैठ कर फ्लाइट की कल्पना करोगे तो वो बात बहुत डरावनी लगेगी।<br />~ ताल तलैया को छोड़ने में ही मानसरोवर मिल जाता है। आपको जो आपके तल पर सुविधाएं मिल रही हैं वो महज कंपेंसेशंस (मुआवजा) हैं जो असली चीज के ना मिलने पर आपने इकठ्ठी कर रखी हैं। That is compensation for not having the real thing!<br />~ अगर सबकुछ गवा कर भी एक खरा जीवन मिल जाए तो ऐसा सौदा बहुत शुभ है। और अगर खरे जीवन को गवा कर अथाह दौलत भी मिल जाए तो भी नुकसान ही है। <br /><br /><br />मन मस्त हुआ तब क्यों बोले<br />हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार बार वाको क्यों खोले ॥<br /><br />हलकी थी तब चढ़ी तराजू, पूर भई तब क्यों तोले ॥<br />सुरत कलारी भइ मतवारी, मदवा पी गई बिन तोले ॥<br /><br />हंसा पाये मान सरोवर, ताल तलैया क्यों डोले ॥<br />तेरा साहेब है घट माहीं, बाहर नैना क्यों खोले ॥<br /><br />कहैं कबीर सुनो भाई साधो, साहेब मिल गये तिल ओले ॥<br /><br />~ कबीर साहब<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~

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